Monday, September 13, 2010

वो बन संवर के चले हैं घर से

ये अभी के लिए पंकज उधास की आखरी किस्त है, २ पोस्टों से लगातार आपको पंकज उधास सुना रहा हूँ, अब ये गज़ल सुन लीजिए, विडियो भी है, बड़ा ही खूबसूरत सा विडियो है.


देखिये और आनंद लीजिए,




वो बन संवर के चले हैं घर से
हैं खोए खोए से बेख़बर से
दुपट्टा ढलका हुआ है सर से
ख़ुदा बचाए बुरी नज़र से
वो बन संवर के ...

कभी जवानी की बेखुदी में
जो घर से बाहर कदम निकालो
सुनहरे गालों पे मेरी मानो
तुम एक काला सा तिल सजा लो
बदन का सोना चुरा ले सारा
कोई नज़र उठ के कब किधर से
ख़ुदा बचाए ...

ये नर्म-ओ-नाज़ुक हसीन से लब
के जैसे दो फूल हों कंवल के
ये गोरे मुखड़े पे लाल रंगत
के जैसे होली का रंग छलके
सम्भालो इन लम्बी चोटियों को
लिपट न जाएँ कहीं कमर से
ख़ुदा बचाए ...

ये शहर पत्थरों का शहर ठहरा
कहाँ मिलेगी यहाँ मोहब्बत
ये शीशे जैसा बदन तुम्हारा
मेरी दुआ है रहे सलामत
तुम्हारे सपनों की नन्हीं कलियाँ
बची रहें धूप के असर से
ख़ुदा बचाए ...

Thursday, September 9, 2010

तेरा उलझा हुआ दामन

ये आप पंकज उधास का हैंगओवर कहे या कुछ और, लेकिन कल से लगातार उन्ही के गाने, ग़ज़लें सुन रहा हूँ. आज फिर दो गीत ले के आया हूँ , आशा है की आपको पसंद आएगी.


तेरा उलझा हुआ दामन, मेरी उलझन तो नहीं
जो मेरे दिल में है शायद तेरी धड़कन तो नहीं..


यूँ यकायक मुझे बरसात की क्यों याद आई,
जो घिरा है तेरी आँखों में वो सावन तो नहीं..
जो मेरे दिल में है शायद तेरी धड़कन तो नहीं..

उसके लहराने से हस्ती के कदम काँप गए, 
जिसको कहते हैं कफ़न वो तेरा दामन तो नहीं..
जो मेरे दिल में है शायद तेरी धड़कन तो नहीं..


अपने मुखर की तुझे इनमे भला क्यों है तलाश,
मेरी  आँखें हैं तेरे सामने, दर्पण तो नहीं..
जो मेरे दिल में है शायद तेरी धड़कन तो नहीं..






अब  एक और गज़ल सुन लें पंकज उधास की आवाज़ में..

तुम न मानो मगर हकीकत है
इश्क इंसान की जरुरत है..

हुस्न  ही हुस्न, जलवे ही जलवे,
सिर्फ अहसास की जरुरत है..

इश्क इंसान की जरुरत है..


उसकी महफ़िल में बैठ कर देखो,
जिंदगी कितनी खूबसूरत है..

इश्क इंसान की जरुरत है..


जी रहा हूँ, इस एतमात के साथ,
जिंदगी को मेरी ज़रूरत है..

इश्क इंसान की जरुरत है..


तुम न मानो मगर हकीकत है,
इश्क इंसान की जरुरत है..



अगले पोस्ट में एक नयी गज़ल रहेगी पंकज उधास की..

Wednesday, September 8, 2010

निकलो न बेनकाब - पंकज उधास

गज़लों में सबसे पहले अगर किसी गज़ल गायक का मैं फैन बना तो वो पंकज उधास ही हैं, इसका कारण बस ये था की घर में पापा सुनते थे पंकज उधास की ग़ज़लें और कुछ कैसेट घर में पहले से मौजूद थीं..उनकी ये गज़ल काफी चर्चित रही है, आप सब ने सुना भी होगा कई बार, ये गज़ल मुझे खासकर के अच्छी इसलिए लगती है क्यूंकि कुछ बचपन की यादें जुड़ी हुई हैं इस गज़ल से.


बेपर्दा नज़र आयी कल जो चन्द बीबियां
अकबर ज़मीं में गैरत-ए-क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो मैने आप का पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं के अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया…

निकलो न बेनक़ाब ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है

सब कुछ हमें खबर है नसीहत न कीजिये
क्या होंगे हम खराब, ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है

पीने का दिल जो चाहे उन आँखों से पीजिए
मत पीजिए शराब, ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है






मतलब छुपा हुआ है यहां हर सवाल में
तू सोचकर जवाब, ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है

राशिद तुम आ गये हो ना आखिर फ़रेब में
कहते न थे जनाब, ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है

विडियो  देखें, पंकज उधास एक कोंसर्ट में...