कहने को तो दुनिया में हैं सुखनवर बहुत अच्छे, पर कहते हैं कि "गाने-साने" का है अंदाज-ए-बयां और!
Monday, May 31, 2010
जन-गण-मन
Sunday, May 30, 2010
गुलाम अली की दो ग़ज़लें..
आवारगी..ये दिल ये पागल दिल मेरा, क्यूँ बुझगया, आवारगी..
इसदश्त में एक शहरथा, वो क्या हुआ आवारगी..
कल शब् मुझे बे-शक्ल सी, आवाज़ ने चौका दिया..
मैंने कहा तू कौन है, उसने कहा आवारगी..
इक तू की सदियों से, मेरे हम-राह भी हम-राज भी..
एक मैं की तेरे नाम से न-आश्ना, आवारगी..
ये दर्द की तन्हाइयां, ये दश्त का वीरां सफर..
हम लोग तो उकता गए,अपनी सुना आवारगी..
एक अजनबी झोंके ने जब पुछा मेरे गम का सबब..
सहरा की भीगी रेत पे, मैंने लिखी आवारगी..
लो अब दश्त-ए-शब् की, शारी वुसअतें सोने लगीं..
अब जागना होगा हमें, कब तक बता आवारगी..
कल रात तनहा चंद को, देखा था मैंने ख्वाब में..
मोहसिन मुझे रास आएगी, शायद सदा आवारगी...
कभी किताबों में फूल रखना
कभी किताबों में फूल रखना, कभी दरख्तों पे नाम लिखना
हमें भी याद है आज तक वो नज़र से हर्फ़-ए-सलाम लिखना..
वो चंद चेहरे वो बहकी बातें,सुलगते दिन थे महकती रातें..
वो छोर छोर से कागजों पे मोहब्बतों के पयाम लिखना
गुलाब चेहरों से दिल लगाना, वो चुपके चुपके नज़र मिलाना..
वो आरजुओं के खवाब बुनना, वो किस्सा-ए-न-तमाम लिखना..
गई रुतों में हसन हमारा, बस एक ही तो ये मशगला था..
किसी के चेहरे को सुबहो कहना, किसी की जुल्फों को शाम लिखना ..
Wednesday, May 26, 2010
पल दो पल हैं प्यार के - नुसरत और राहत कि आवाज में एक ही गीत, मगर दो अलग अंदाज
नुसरत कि आवाज में गाया हुआ यह गीत यहाँ सुने :
ऐसे जीवन प्यार सजाये
जैसे फूल से खुशबू आये
जाने!!
होती है जीत दिल हार के
दुनिया है सूनी बिन यार के
पल दो पल हैं प्यार के,
पल दो पल हैं प्यार के...
आँखों में छुपा हो कोई
साँसों में बसा हो कोई
जब तक जाँ है दिल से ना जाए
आंसू को छुपाने होंगे
वादे को निभाने होंगे
हो ना जुदाई, मौत भी आये
रहता है इन्तजार ही
गुलशन में एक बार ही
होते है लम्हे बहार के.
पल दो पल हैं प्यार के...
सोचे या ना सोचे कोई
चाहे या ना चाहे कोई
फूल फिजां में खिल नहीं सकते
बैरी है ज़माना यहाँ
सम्मा परवाना यहाँ
जल सकते हैं, मिल नहीं सकते
टूटे ना साथ यार का
दुनिया में नाम प्यार का
होता है तन मन वार के.
पल दो पल हैं प्यार के...
इश्क आग में कूद गया..
अक्ल बड़ी हैरान हुई,
जब बाजी ले गया प्यार..
राहत फतेह अली खान और हुमेरा चना का गाया हुआ यह गीत एक पाकिस्तानी सिनेमा "पल दो पल" नामक सिनेमा का है.. इसे यहाँ सुने :
ऐसे जीवन प्यार सजाये
जैसे फूल से खुशबू आये
जाने!!
होती है जीत दिल हार के
दुनिया है सूनी बिन यार के
पल दो पल हैं प्यार के,
पल दो पल हैं प्यार के...
जाने या ना जाने कोई
माने या ना माने कोई
दुःख-सुख मिल के साथ रहेंगे
देखे या ना देखे कोई
बोले या ना बोले कोई
हाथों में उसके हाथ रहेंगे
सपनो के पीछे भाग के
रातों को जाग जाग के
कटते हैं दिन इन्तजार के.
पल दो पल हैं प्यार के...
सोचे या ना सोचे कोई
चाहे या ना चाहे कोई
फूल फिजां में खिल नहीं सकते
बैरी है ज़माना यहाँ
सम्मा परवाना यहाँ
जल सकते हैं, मिल नहीं सकते
टूटे ना साथ यार का
दुनिया में नाम प्यार का
होता है तन मन वार के.
पल दो पल हैं प्यार के...
Saturday, May 22, 2010
कबाड़ी के कबाड़ से निकला यादों का पुलिंदा
कहां-कहां से ढूंढ कर कभी हुश्न-ए-जाना तो कभी पैगाम-ए-मुहब्बत तो कभी नुसरत कि कव्वालिया तो कभी म्यूजिक टूडे पर आने वाले संगीतों कि श्रृखला खरीद कर लाते थे.. हम दोनो भाई जब भी बाजार जाते थे तो भैया कैसेट कि दूकान पर लपक लेते थे और मैं किताबों कि दुकान पर.. मैं 15 साल का था उस समय और भैया 17 साल के.. मगर शायद ही कभी ऐसा हुआ हो की भैया का खरीदा हुआ कोई कैसेट बेकार या फालतू निकला हो..
जब 12 साल का था तब मैं पहली बार नुसरत को सुना था.. उन दिनों चक्रधरपुर में रहते थे जो कि अब झारखंड में है.. उसे शहर कहना ठीक नहीं होगा, एक छोटा सा कस्बा था वह.. वहां मेरी मौसी नानी रहती थी और मैंने अपने मामा जी के पास नुसरता का वह एल्बम "उनकी गली में आना जाना" सुना और उनसे हमेशा के लिये मांग कर लेता आया.. मुझे याद है कि घर में नुसरत को सुनना उस समय किसी को पसंद नहीं था.. शायद ये 1994 कि घटना है.. उन्ही दिनों बैंडिट क्वीन सिनेमा आयी थी और हमारे उम्र के लड़कों के मुंह से उस सिनेमा कि चर्चा भी एक पाप जैसा समझा जाता था.. उन दिनों मैं विक्रमगंज में पापाजी के साथ था और भैय, दीदी और मम्मी पटना में थे.. एक बार जब मैं घर पहूंचा तब देखा कि भैया बैंडिट क्वीन का कैसेट खरीद रखे हैं और घर में बस नुसरत ही छाया हुआ है.. मैं तो उसका दिवाना इस कदर था कि मेरे मित्र मुझे नुसरत ही कहा करते थे.. अब भी उस जमाने के मित्र कहीं पटना की गलियों में टकरा जाते हैं तो आदाब नुसरत साहब कह कर ही अभिवादन होता है.. अब घर में भैया भी उसे खूब सुनने लगे थे और उनकी दिवानगी कुछ ऐसी हो चुकी थी कि नुसरत साहब की मॄत्यु पर 2-3 दिन तक भैया चुपचाप थे..
अब जबकी नुसरत भैया के हिटलिस्ट में था और कैसेट खरीदना भी उन्हीं के जिम्मे तो एक एक करके भारत में उपलब्ध नुसरत की सभी कव्वालियां और पाश्चात्य संगीत भैया ने घर में सजा दिये.. मुझे याद है कि एक कैसेट उन्हें नहीं मिला था जिसे मैं अब भी ढ़ूंढ़ता हूं.. "Dead Man Walking".. सोचता हूं कभी मिले तो भैया को गिफ्ट कर सकूं.. कुछ दिनों बाद मुन्ना भैया भी पटना आ गये और पत्रकारिता के शुरूवाती दिनों के संघर्ष में जुट गये.. अक्सर वो घर आते थे, और भैया और मुन्ना भैया के बीच गानों को लेकर खूब बाते होती थी.. एक तरफ कैरम और दूसरी तरफ अच्छे कर्णप्रिय गाने.. और मम्मी अपना सर पीटती थी कि पढ़ाई-लिखाई से इस सबको कोई मतलब ही नहीं है.. :)
बस यही कहना चाहूंगा, "काश कोई लौटा दे वो सुकून, चैन से भरे दिन.. गुनगुनी जाड़े की दूप, रविवार कि सुबह, जब हम सभी भाई-बहन और पापा-मम्मी साथ थे.. हर शाम कैरम का दौर चलता था.. जिसमें मैं अक्सर हारा करता था भैया से.. मगर उन्हें कैरम में डर भी मुझ से ही लगता था, क्योंकि कैरम में वो बस मुझ से ही कभी हारा करते थे.. मगर अब ये नहीं हो सकता है.. चिड़ियों के बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, अपना आशियां तलाशने को घर से उड़ चुके हैं.. मन में दुनिया को जितने का जज्बा लिये और सर पर पापा-मम्मी का आशीर्वाद लिये.."
तब तक के लिये आप बैंडिट क्वीन सिनेमा का नुसरत का यह गीत सुने..
सजना, सजना तेरे, तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।
काटूं कैसे तेरे बिना बड़ी रैना, तेरे बिना जिया नाहीं लागे ।
पलकों में बिरहा का गहना पहना
निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
बूंदों की पायल बजी, सुनी किसी ने भी नहीं
खुद से कही जो कही, कही किसी से भी नहीं
भीगने को मन तरसेगा कब तक
चांदनी में आंसू चमकेगा कब तक
सावन आया ना ही बरसे और ना ही जाए
हो निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
सरगम खिली प्यार की, खिलने लगी धुन कई
खुश्बू से 'पर' मांगकर उड़ चली हूं पी की गली
आंच घोले मेरी सांसों में पुरवा
डोल डोल जाए पल पल मनवा
रब जाने के ये सपने हैं या हैं साए
हो निंदिया काहे ऐसी अंखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ।।
गलती से नुसरत के गाये गाने के बजाये कुछ और पॉडकास्ट कर दिया था, मगर जो भी पॉडकास्ट हुआ था उसे भी मैं नहीं हटा रहा हूं क्योंकि वो भी शानदार गाया हुआ है.. वो सारेगामापा के किसी एपिसोड में किसी पाकिस्तानी गायक द्वारा गाया हुआ है.. फिलहाल आप दोनों ही गीतों के मजे लिजिये..
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यह पोस्ट मैंने कुछ साल पहले "मेरी छोटी सी दुनिया" के लिए लिखी थी, फिलहाल एक संकलन के तौर पर इसे यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ..
Friday, May 21, 2010
आया है मुझे फिर याद - कुछ ख़ास बचपन के पलों को याद दिलाता ये खूबसूरत गीत
फिल्म देवर का ये गीत के गायक थे मुकेश. और संगीत दिया था रोशन लाल ने. रोशन लाल अभिनेता-डाइरेक्टर राकेश रोशन और संगीतकार राजेश रोशन के पिता थे. इस गाने के गीतकार थे आनंद बक्शी.
ये गीत मेरे लिए कुछ मायनो में ख़ास भी है.जब मैं बारहवीं में था तब ये गीत मैंने पहली बार सुना था और बता नहीं सकता मुझे उस वक़्त कितनी ज्यादा पसंद आयीं थी.आप भी सुने....
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुजरा जमाना बचपन का.....
हाय रे अकेले छोर के जाना
और ना आना बचपन का
आया है मुझे फिर याद वो जालिम..
वो खेल वो साथी वो झूले..
वो दौड़ के कहना आ छु ले
हम आज तलक भी ना भूलें..
वो ख्वाब सुहाना बचपन का
आया है मुझे फिर याद वो जालिम...
इसकी सबको पहचान नहीं..
ये दो दिन का मेहमान नहीं
मुश्किल है बहुत आसन नहीं..
ये प्यार भुलाना बचपन का
आया है मुझे फिर याद वो जालिम...
मिलकर रोये..फ़रियाद करें
उन बीते दिनों की याद करें..
ऐ काश कहीं मिल जाए कोई,
युं मीत पुराना बचपन का..
Thursday, May 20, 2010
फेंको ये किताबें...
हाँ हाँ यादों में है अब भी,
क्या सुरीला वो जहाँ था,
हमारे हाथों में रंगीन गुब्बारे थे,
और दिल में महकता समां था,
यारा हो मौला…
वो तो ख्वाबो कि थी दुनिया,
वो किताबो कि थी दुनिया,
साँस में थे मचलते हुए ज़लजले,
आँख में वो सुहाना नशा था,
यारा हो मौला…
वो ज़मीन थी, आसमान था,
हम को लेकिन क्या पता था,
हम खड़े थे जहाँ पर,
उसी के किनारे पर गहरा सा अँधा कुआ था,
फिर वो आये भीड़ बन कर,
हाथ में थे उनके खंजर,
बोले फेंको यह किताबे ,
और संभालो यह सलाखें,
ये जो गहरा सा कुआ है, हाँ हाँ अँधा तो नहीं है,
इस कुए में है खज़ाना, कल कि दुनिया तो यही है,
कूद जाओ लेके खंजर, काट डालो जो हो अन्दर,
तुम ही कल के हो शिवाजी, तुम ही कल के हो सिकंदर,
हमने वो ही किया जो उन्होंने कहा,
क्यूंकि उनकी तो ख्वाहिश यही थी,
हम नहीं जानते यह भी क्यू यह किया?
क्यूंकि उनकी फरमाइश यही थी,
अब हमारे लगा जायका खून का,
अब बताओ करे तो करे क्या?
नहीं है कोई जो हमे कुछ बताये,
बताओ करे तो करे क्या??
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विद्यार्थियो को क्रान्ति के नाम पर बरगलाने वालो को ये तमाचा था… रोज़ कश्मीर मे आतंकवादियो और बाकी क्षेत्रो मे नक्सलवादियो के चक्कर मे आने वाले छात्रो के लिये ये एन्थेम होना चाहिये……
ये गाना ज्यादा पॉपुलर नही हुआ… पीयूष मिश्रा के शानदार शब्द और इंडियन ओशियन का लाजवाब संगीत शायद लोगो के कानो के पार नही पहुँचा। हमारे हिन्दी समाज मे ऐसे चिल्लाते हुए गानो का ज्यादा प्रचलन भी नही है।
वेस्ट मे ऐसे कई सिंगर रहे जिन्होने वहाँ के सोते हुये समाज को जगाने की कोशिशे की। ऐसे गानो को प्रोटेस्ट सांग कहा गया और ये गाने जनता की आवाज़ बनते गये…
साठ के दशक मे बाब डायलन ने इन गानो को एक नयी पहचान दी। उनके तकरीबन सारे गाने उस समाज के शोषित वर्ग को सम्बोधित करते थे और उनपर होने वाली त्रासदियो को बताते थे… यहा तक कि इन्होने अमेरिका के सिविल राईट आन्दोलन मे मार्टिन लूथर किन्ग की रैलियो मे भी गाया…
वूडी एक ऐसे सिंगर थे जिन्होने वहा के फोल्क म्यूजिक को एक अलग परिभाषा दी और प्रोटेस्ट गानो को नये मायने। उनके गिटार पर लिखा होता था – This machine kills Fascists.
हाल मे ही एक फ़िल्म आयी थी – आई एम नाट देयर, जिसमे अलग अलग प्रोटेस्ट सिन्गर्स के पर्सपेक्टिव से बाब डायलन की ज़िन्दगी को दिखाया गया था। अवश्य देखे उसे..
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मैने ये सब क्यू लिखा?
बस इंडियन ओशियन का ये गाना सुन रहा था, इसका वीडियो जब यू ट्यूब पर ढूढा तो रिज़ल्ट अपेक्षा से बहुत ज्यादा कम दिखे… सोचा आपसे पूछू कि क्या आपने इसे सुना है??
P.S इसी तर्ज़ पर अपने पसन्दीदा गाने भी जरूर शेयर करे……
नुसरत को समेटे हुए पांच पोस्टों का जिक्र कुछ इस तरह
"सूफ़ी कवि वह होता है जो एक प्याले में रोशनी भरता है और प्यास से पपड़ाए-सूखे तुम्हारे पवित्र हृदय के लिए उसे पी जाता है!"इस पोस्ट में अशोक पांडे जी कहते हैं :
यह अनायास ही नहीं हुआ कि महान सूफ़ी कवि तब पैदा हुए जब समाज पर धार्मिक कट्टरवाद अपने चरम पर था. इन कवियों-गायकों की आमफ़हम भाषा की बढ़्ती लोकप्रियता से चिन्तित कठमुल्ले शासकों ने उन पर प्रतिबन्ध लगाए.भाग दो में अशोक जी बताते हैं :
कहा जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा. भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे.अधिक जानने के लिए इसके भाग एक और भाग दो को पढ़ें.. अवश्य आनंद आएगा..
हिंदी-युग्म के पॉडकास्ट वाले इस ब्लॉग पर कई नगीने छुपे हुए हैं.. अगर आप ख़ूबसूरत गानों के शौक़ीन हैं तो कभी फुरसत में बैठ आप आराम से इस ब्लॉग को देखें..
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आपको मयूर जी द्वारा प्रस्तुत इस पोस्ट को जरूर देखना चाहिए.. यहाँ वह नुसरत साहब के ही एक अन्य कव्वाली का जिक्र कर रहे हैं.. कव्वाली के बोल हैं "ये जो हल्का-हल्का सुरूर है".. जब पहली बार मैंने यह कव्वाली सुनी तब कोई १४-१५ साल का रहा होऊंगा.. वह उम्र अमूमन तेज भागते गानों को पकड़ने का उम्र होता है जिसमे धैर्य कि जरूरत ना पड़े, मगर फिर भी पूरे धैर्य के साथ लगभग बीस मिनट कि यह कव्वाली जाने कितनी ही दफा सुना होऊंगा..
कुछ बोल यहाँ डाल रहा हूँ, बाकी आप उन्ही के ब्लॉग पर जाकर पढ़े और सुने :
साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गयाउनके ब्लॉग का लिंक यहाँ है.. सबसे नीचे वह लिखते हैं :
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ़
मैं इंतिहा-ऐ-शौक में घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्दा चश्म-ऐ-यार की शह पा के पी गया
यदि मै कहू मुझे नुसरत फतह अली खान साहब का नशा है तो वोह ग़लत नही है, खुदा ने मेरे गले को उतना नूर नो नही दिया , पर शुक्रियाअदा करता हूँ उनका के मुझे सुन सकने लायक बनाया है ।==============================================
हमारे नीरज रोहिल्ला भाई अक्सर दौडना छोड़ कर कव्वालियों में भी गोते लगाते रहते हैं.. नुसरत साहब कि ही एक पंजाबी कव्वाली जो बुल्ले साह का लिखा हुआ है सुनाते हुए वह कहते हैं :
मुझे बेहद अफ़सोस है कि कभी पंजाबी नहीं सीखी, मेरा ननिहाल रोहतक में था(है?)। मेरी माताजी पंजाबी बोल/समझ लेती हैं लेकिन कभी उनसे पंजाबी नहीं सीखी इसका बडा रंज है।इस कव्वाली के कुछ बोल यहाँ नीचे दिए जा रहा हूँ, बाकी आप उनके पोस्ट पर ही जाकर गुने और सुने..
गफ़लत न कर तू, छोड जंगली बसेरा ।उनके इस पोस्ट पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें..
पंछी वापिस घर आ गये, तेरा मन क्यों नहीं करता,
मैं तेरी तू मेरा,
यार जिन्दगी करे कुरबानी जे यार आये एक बार,
इश्क का चर्खा दुखों का पूरिया (पहाड)
==============================================
इसमें एक बार फिर अशोक पांडे जी को लेकर आया हूँ, उनके कबाड़ख़ाने से.. इस पर आलोक पुराणिक जी का कमेन्ट अनुसरणीय है.. वे कहते हैं :
भई वाह वाह है जी।मेरे मुताबिक उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है.. एक से बढ़कर एक हीरे जरे हुए हैं इस कबाड़खाने में.. जिनमें मैं सिद्धेश्वर जी और अशोक जी को पढ़ना खूब पसंद करता हूँ.. एक से बढ़कर एक कविता, गजल और कव्वाली आपको यहाँ मिलेंगे.. सिर्फ आपको धैर्य के साथ ढूँढना होगा उन्हें..
इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा
राष्ट्रीय संग्रहालय को वो कबाड़खाना कहते हैं
सरजी
मैंने तो कबाड़खाने को राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित कर दिया है।
इस पोस्ट में वह लेकर आये थे नुसरत साहब कि ही एक कव्वाली जिसके बोल हैं "सुन चरखे दी मिट्ठी मिट्ठी कूक".. इसे पेश करते हुए वह कहते हैं :
अपनी नातों और सूफ़ियाना क़व्वालियाओं के लिए जगतविख्यात नुसरत फ़तेह अली ख़ान अपने जीवनकाल में ही एक किंवदन्ती बन गए थे. आवाज़ के साथ उनकी जादूगरी के साथ मैं पता नहीं कितनी कितनी बार बहा हूं, रोया हूं और नितान्त अकेलेपन में भी अलौकिक साथियों से घिरा हूं.इस पोस्ट पर जाने के लिए आपको इस लिंक से होकर गुजरना पड़ेगा..
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पिछले साल शिवम मिश्रा जी यह पोस्ट नुसरत साहब के जन्मदिन पर लेकर आये थे जो आज ही मेरे हाथ लगा और मुझे यह पोस्ट लिखने का आइडिया और मौका मिला.. इस पोस्ट में वह नुसरत साहब के जन्म, खानदान, पिता, कव्वाली और भी ना जाने क्या क्या समेत रखे हैं.. इस पोस्ट में वह लिखते हैं :
रूहानी संगीत का जिक्र सूफी संगीत की बिना अधुरा है…और सूफी संगीत उस्ताद नुसरत फ़तेह अली के बिना अधुरा है.आपका तो पता नहीं लेकिन उनकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ मैं.. आगे बताते हैं :
उस्ताद नुसरत बेहद संजीदा इन्सान थे.बुलंदी के मुकाम पर भी नुसरत ने हमेसा सादगी से नाता रखा.कहते हैं के सूफी गाते गाते वे सूफी हो गए.वे ख़ुद भी मानते थे कि”ज्यादा सूफी सुनने और गाने से इंसान की फितरत में बेराग्य पैदा हो जाता है।अधिक जानने के लिए के लिए आप इस लिंक पर जाएँ..
Wednesday, May 19, 2010
कार्लोस संटाना का एक गीत
Songwriters: Jean, Wyclef; Rekow, Paul; Santana, Carlos; Hough, Marvin; Mcrae, David; Perazzo, Karl; Duplessis, Jerry
Ladies and gents
turn up your sound system to the
sound of carlos santana and the GMB
(Surprada)
Ghetto people- from the Refugee Gang
oh Maria Maria
She reminds me of a west side story
Growing up in Spanish Harlem
She's living the life just like a movie star
oh Maria Maria
She fell in love in East L.A.
To the sounds of the guitar, yeah, yeah
Played by Carlos Santana
Stop the looting, stop the shooting
Pick pocking on the corner
See as the rich is getting richer
The poorer is getting poorer
See mi y Maria on the corner
Thinking of ways to make it better
In my mailbox there's an eviction letter
Somebody just said see you later
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula (east coast)
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula (west coast )
oh Maria Maria
She reminds me of a west side story
Growing up in Spanish Harlem
She's living the life just like a movie star
oh Maria Maria
She fell in love in East L.A.
To the sounds of the guitar, yeah, yeah
Played by Carlos Santana
I said a la fella los colores
The streets are getting hotter
There is no water to put out the fire
Mi cosa la esperanza
Se mira Maria on the corner
Thinking of ways to make it better
Then I looked up in the sky
Hoping of days of paradise
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula (north side)
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula
(south side)
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula ( world wide)
Ahora vengo mama chula mama chula
Ahora vengo mama chula ( open up ur eyes )
Maria you know you're my lover
When the wind blows I can feel you
Through the weather and even when we're apart
It feels like we're together maria
She reminds me of a west side story
Growing up in Spanish Harlem
She's living the life just like a movie star
oh Maria Maria
She fell in love in East L.A.
To the sounds of the guitar, yeah, yeah
Played by Carlos Santana
Puttin them up yo
Carlors Santana with the refugge gang
wite clef jerry my dog Mr santana GMB
yo carlos u play that guitar proud
Tuesday, May 18, 2010
शहर के दुकानदारों, कारोबार-ए-उलफ़त में
जावेद अख्तर जी का लिखा हुआ और नुसरत जी द्वारा गया गया यह गीत मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक है..
शहर के दुकानदारों कारोबार-ए-उलफ़त में
सूद क्या ज़ियाँ* क्या है, तुम न जान पाओगे
दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने मँहगे हैं
और नकद-ए-जान** क्या है तुम न जान पाओगे
*हानि **आत्मा की पूँजी
कोई कैसे मिलता है, फूल कैसे खिलता है
आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
शौक की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे
वस्ल* का सुकूँ क्या हैं, हिज्र का जुनूँ क्या है
हुस्न का फुसूँ** क्या है, इश्क के दुरूँ*** क्या है
तुम मरीज-ए-दानाई****, मस्लहत के शैदाई*****
राह ए गुमरहाँ क्या है तुम ना जान पाओगे
*मिलन, **जादू, ***अंदर, ****जिसे सोचने समझने का रोग हो, *****कूटनीति पसंद करने वाला
ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
अश्क़ क्या है नाले* क्या, दश्त क्या है छाले क्या
आह क्या फुगाँ** क्या है, तुम ना जान पाओगे
*दर्दभरी आवाज़, **फरियाद
नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
तुमको कब नज़र आई ग़मज़र्दों* की तनहाई
ज़ीस्त बे-अमाँ** क्या है तुम ना जान पाओगे
*दुखियारों, **असुरक्षित जीवन
जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी* भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे
*शायरी का शौक
एक नजर इधर भी दें, इस गीत में प्रयुक्त उर्दू शब्दों के अर्थ मैंने यही से लिए हैं..
आपको इस अल्बम(संगम) का वह "आफरीन-आफरीन" वाला गीत तो अब भी याद जरूर होगा.. फिलहाल इस गीत का आनंद उठायें..
Sunday, May 16, 2010
किया है प्यार जिसे, हमने जिंदगी की तरह
इसमें जिस तरह के गाने हैं वैसे गाने मुझे रात के अंधेरे में सुनने में जाने क्यों अच्छा लगता है.. 7-8 गानों का छोटा सा कलेक्शन इस फोल्डर में दिखा.. मैंने गानों को चालू कर दिया.. आवाज इतनी कि विकास की नींद ना खुले.. मगर मैं जानता था कि वो अभी जगा ही होगा.. गाने कि शुरूवात हुई सेलिन डिओन के एक गाने से जिसके बोल थे "That's the way it is.." फिर "हमको दुश्मन कि निगाहों से ना देखा किजे.." उसके बाद गुलजार कि बारी, "खामोश सा अफ़साना.." अगले दो गीतों को मैंने आगे बढा दिया.. अब गीत सुनने का भी मन नहीं कर रहा था.. मगर गानों को बंद करने से पहले ही गुलाम अली कि आवाज कानों में पड़ी जिसे मैं नजर अंदाज करके गाने बंद नहीं कर पाया.. "किया है प्यार जिसे हमने जिंदगी की तरह.." मैं ये गाना गुलाम अली के अलावा जगजीत-चित्रा की आवाज में भी सुन चुका हूं.. एक बार किसी और की आवाज में भी सुना था ये गीत मगर याद नहीं किसकी आवाज थी.. खैर मुझे तो ये गुलाम अली के आवाज में ही अच्छा लगता है.. फिर सोने से पहले इसे 4-5 बार सुना.. घड़ी में देखा रात के 2 बज चुके थे.. फिर शायद नींद आ ही जाये सोचकर गानों को बंद करके लेट गया.. जाने फिर कब नींद आ गई..
आप फिलहाल ये गीत सुनिये.. बाकी बातें बाद में करते हैं.. और अगर आपको यह जानकारी हो कि ये गीत किसी और ने भी गाया है तो मुझे बताना ना भूलें..
किया है प्यार जिसे, हमने जिंदगी की तरह..
वो आसनां भी मिला, हमसे अजनबी की तरह..
बढा के प्यास मेरी, उसने हाथ छोड़ दिया..
वो कर रहा था मुरौव्वत भी दिल्लगी की तरह..
किया है प्यार जिसे, हमने जिंदगी की तरह..
वो आसनां भी मिला, हमसे अजनबी की तरह..
किसे खबर थी बढेगी, कुछ और तारीखी..
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह..
किया है प्यार जिसे, हमने जिंदगी की तरह..
वो आसनां भी मिला, हमसे अजनबी की तरह..
कभी ना सोचा था हमने कतील उसके लिये..
करेगा वो भी सितम हमपे, हर किसी की तरह..
किया है प्यार जिसे, हमने जिंदगी की तरह..
वो आसनां भी मिला, हमसे अजनबी की तरह..
गुलाम अली की आवाज में ये गीत यहां है -
|
जगजीत-चित्रा की आवाज में ये गीत यहां है -
वक्त ने किया क्या हसीं सितम
कागज के फूल का गीत, गीतादत्त द्वारा गया हुआ
वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..
बेक़रार दिल, इस तरह मिले,
जिस तरह कभी हम जुदा न थे..
तुम भी खो गए, हम भी खो गए..
एक राह पर चल के दो कदम..
वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..
जायेंगे कहाँ, सूझता नहीं..
चल पड़े मगर, रास्ता नहीं..
क्या तलाश है, कुछ पता नहीं..
बुन रहे हैं दिन, ख़्वाब दम-बदम
वक्त ने किया क्या हसीं सितम,
तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम..