जावेद अख्तर जी का लिखा हुआ और नुसरत जी द्वारा गया गया यह गीत मेरे सबसे पसंदीदा गीतों में से एक है..
शहर के दुकानदारों कारोबार-ए-उलफ़त में
सूद क्या ज़ियाँ* क्या है, तुम न जान पाओगे
दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने मँहगे हैं
और नकद-ए-जान** क्या है तुम न जान पाओगे
*हानि **आत्मा की पूँजी
कोई कैसे मिलता है, फूल कैसे खिलता है
आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
शौक की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे
वस्ल* का सुकूँ क्या हैं, हिज्र का जुनूँ क्या है
हुस्न का फुसूँ** क्या है, इश्क के दुरूँ*** क्या है
तुम मरीज-ए-दानाई****, मस्लहत के शैदाई*****
राह ए गुमरहाँ क्या है तुम ना जान पाओगे
*मिलन, **जादू, ***अंदर, ****जिसे सोचने समझने का रोग हो, *****कूटनीति पसंद करने वाला
ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
अश्क़ क्या है नाले* क्या, दश्त क्या है छाले क्या
आह क्या फुगाँ** क्या है, तुम ना जान पाओगे
*दर्दभरी आवाज़, **फरियाद
नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
तुमको कब नज़र आई ग़मज़र्दों* की तनहाई
ज़ीस्त बे-अमाँ** क्या है तुम ना जान पाओगे
*दुखियारों, **असुरक्षित जीवन
जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी* भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे
*शायरी का शौक
एक नजर इधर भी दें, इस गीत में प्रयुक्त उर्दू शब्दों के अर्थ मैंने यही से लिए हैं..
आपको इस अल्बम(संगम) का वह "आफरीन-आफरीन" वाला गीत तो अब भी याद जरूर होगा.. फिलहाल इस गीत का आनंद उठायें..
क्या बात है.
ReplyDeleteनुसरत साहिब और जावेद अख्तर साहिब. क्या खूबसूरत मेल है.
जब ये एल्बम रिलीज हुई थी तो मेरे मामा ये वाला कैस्सेट ले के आये थे...उस समय ऐसे गीत सुनता नहीं था तो मैंने कहा की क्या बकवास एल्बम है....
ReplyDeleteलेकिन बाद में तो फेवरिट बन गयी अपनी ये एल्बम :)
मैंने नुसरत को पहली बार १९९५ में सुना था.. और उसी समय से इसका फैन बन गया था.. संगम जिस दिन आने वाला था उस दिन सुबह सुबह "छाबड़ा स्पोर्ट्स(फ्रेजर रोड पटना)" के बगल वाले म्यूजिक शॉप में पहुँच गया था.. :)
ReplyDeleteअच्छा सिलसिला है। जारी रखो। हम नियमित आयेंगे। लेबल ठीक कर लो। ghazal
ReplyDeleteलेबल ठीक कर लिए युनुस जी..
ReplyDelete