एक समय था जब दूरदर्शन ही मनोरंजन का एक साधन था.टी.वी का मतलब ही दूरदर्शन ही होता था.कितना कुछ जानने सीखने को मिलता था दूरदर्शन से..प्रोग्राम भी एक से एक होते थे, सामाजिक,पारिवारिक और ज्ञान देने वाले प्रोग्राम.अब तो सीरियल के नाम पे पता नहीं क्या दिखाते रहते हैं टी.वी चैनल वाले.
खैर, हम आज सीरियल और प्रोग्राम के बारे में बात नहीं करेंगे, हम तो दो ऐसे गीत के बारे में बाद करेंगे जो शायद पुराने दूरदर्शन की एक पहचान बन गए हैं.हम इन्ही गीतों को देख कर बड़े हुए.बचपन की न जाने कितनी ही यादें हैं इन दो गीतों से जुडी हुई.
चलिए बिना कुछ और बातें किये सुनते हैं पहला गीत "प्यार की गंगा बहे.." इस गीत का विडियो तो मेरे पास नहीं है और नाही मुझे इन्टरनेट पे मिला..अगर आपमें से किसी के पास इस गाने की विडियो हो तो कृपया लिंक दें..
दूसरा गीत है सदाबहार "मिले सुर मेरा तुम्हारा "
एक और गीत शायद आपको कुछ याद दिलाये....
आशा है की आपको कुछ न कुछ तो पुराने दिनों की बातें याद आयीं ही होंगी इस तीन विडियो को देख कर........ :)
Wow!! I an getting nostalgic..
ReplyDeleteआईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
ReplyDeleteआचार्य जी
मैंने भी इन सबको रिकार्ड कर रक्खा है...
ReplyDeleteहमारा बचपन भी दूरदर्शन के स्वर्णिम दौर से गुजरा है... कहना पडेगा की चरित्र निर्माण की शिक्षा वहीं से मिली है.
मैंने भी इन सबको रिकार्ड कर रक्खा है...
ReplyDeleteहमारा बचपन भी दूरदर्शन के स्वर्णिम दौर से गुजरा है... कहना पडेगा की चरित्र निर्माण की शिक्षा वहीं से मिली है.
साभार : (सुलभ)
;-)
खाली यादे नहीं आया बबुआ… आँख में आँसुओ आ गया... मिले सुर मेरा तुम्हारा का नया रूप भी आया है... ऊ भी अच्छा है... नहींत आजकल एतना हल्ला हो गया है सब चैनेल पर कि पूछो मत...बहुत बहुत धन्यवाद!!!
ReplyDeleteबचपन याद आया, बचपन की जवानी याद आई,
ReplyDeleteउस दौर की कहानी याद आई।
आभार। बहुत अच्छा प्रयास है। कॉमिक्स और अब ये…
धन्यवाद हिमांशु जी, वैसे यह पोस्ट मैंने नहीं, मेरे मित्र अभिषेक ने लिखी है.. :)
ReplyDeleteसाइड बार में उसके ब्लॉग का लिंक आपको मिल जायेगा.. :)
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