जब मैं पहली बार ये गीत सुना था तो मैं तो बिलकुल स्तब्ध रह गया था.मुझे याद तो नहीं पहली बार ये गीत कब सुना था लेकिन हाँ, उस दिन से लेकर आज तक ये गीत मैं अक्सर सुनते आ रहा हूँ.एक नयी ताकत जैसे आ जाती हो इस गीत को सुनने के बाद.
भूपेन हज़ारिका की आवाज़ में ये गीत एक अलग जोश पैदा करती है.
चलिए आप भी गीत का आनंद उठाइए ..
गीत की पंक्तियाँ मैं पूरा लिख नहीं पाया, इसलिए माफ कीजियेगा :)
विस्तार है अपार.. प्रजा दोनो पार.. करे हाहाकार...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ?इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीँ हो क्यूँ ?
विस्तार है अपार ..प्रजा दोनो पार..करे हाहाकार ...
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
haarika sahab ki awaz me ye geet bahut madhur hai
ReplyDeleteअच्छा लगा, बहुत-बहुत आभार
ReplyDeleteभूपेन हज़ारिका मुझे बहुत प्रिय हैं।
हूम-हूम करे मिले तो लाइए
@हिमान्शु जी,
ReplyDeleteमैं पहले वही गाना सोच रहा था पोस्ट करने को लेकिन फिर अचानक से ये गाना डाल दिया,
आपने जो गाना कहा वो यहाँ मिलेगा आपको
दिल हूम-हूम करे
ये गीत बहुत ही पसंद है मुझे..........मैने भी गाया था....http://archanachaoji.blogspot.com/2009/07/blog-post_31.html
ReplyDelete.इस एलबम मे और भी गीत थे .....डोला हो डोला......,
और एल कली दो पत्तियाँ.नाजुक-नाजुक उंगलियाँ......और एक याद नही आ रहा....
इस गाने की तलाश मुझे कई दिनों से थी.मजा आ गया भई .ब्लॉग पर आने की वसूली हो गई.वसूली???
ReplyDeleteअरे ऐसिच हूँ मैं सच्ची
जहाँ खूबसूरत गाने मिले चिपक जाती हूँ.हा हा हा