Friday, June 11, 2010

आज यूं मौज दर मौज गम थम गया

आज इस गीत को सुनने के लिए आपसे मैं समय मांगता हूँ.. यह मांग मेरी नहीं, इस गजल की है.. चैन से बैठ कर सुनने में ही यह गजल सुकून देगा.. मेरा यह दावा है की इसे सुनने के बाद आप भी दाद दिए बिना नहीं जायेंगे.. :)

आज यूं मौज दर मौज गम थम गया
इस तरह गमजदों को करार आ गया..

जैसे खुश्बू-ए-जुल्फ़ें बहार आ गई
जैसे पैगाम-ए-दीदार यार आ गया..

रूत बदलने लगी, रंग-ए-दिल देखना
रंग-ए-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं..

जख्म छलके कोई, या कोई गुल खिला
अश्क उम्रे पे अभ्रे बहार आ गया..

जैसे खुश्बू-ए-जुल्फ़ें बहार आ गई
जैसे पैगाम-ए-दीदार यार आ गया..

खून-ए-यूं शौक से जाम भरने लगे
दिल सुलगने लगे, दाग जलने लगे..

महफ़िल-ए-दर्द फिर रंग पर आ गई
फिर शब-ए-आरजू पर निखार आ गया..

आज यूं मौज दर मौज गम थम गया
इस तरह गमजदों को करार आ गया..

फ़ैज क्या जानिये, यार किस आस पर
मुंतजिर है के लायेगा कोई खबर..

महकशों पर हुये मोहतसिर मेहरबां
दिल फिगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया..

आज यूं मौज दर मौज गम थम गया
इस तरह गमजदों को करार आ गया..

7 comments:

  1. waah bahut khoob gazal hai...sunne me bhi anand aaya...

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  2. वाह!! गज़ब.. किसने गाया है?

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  3. रात के 2:30 में ये सवाल पूछा जाता है क्या? :P

    वैसे सुखविंदर ने गया है इसे.. और फैज का लिखा हुआ है.. :)

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  4. वाह!! आनन्द आ गया..बहुत बढ़िया आईटम सुनवाया.

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  5. हम भी सुन लिए.. :)

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  6. आपकी हर प्रस्तुती दाद के काबिल होती है आभार्

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