Tuesday, July 27, 2010

नए रंग लिए दो गीत

ये पोस्ट खास तौर पे सभी सलमान खान केफैन्स के लिए है :) वैसे तो अभी तक ज्यादातर मैं गज़ल या फिर पुराने गीत पोस्ट करते आया हूँ...ये गीत मेरे कुछ दोस्तों के लिए समर्पित है जिन्हें सलमान खान पसंद है..

कुछ और खास बात है दोनों गीतों में,दोनों गीतों का संगीत दिया है "जतिन-ललित" ने..जतिन-ललित मेरे नए संगीतकारों में सबसे पसंदीदा हैं.उनका दिया शायद ही कोई संगीत हो जिसे मैंने नहीं सुना है...तो आप मुझे जतिन-ललित का एक ब्लाइंड-फैन कह सकते हैं.जतिन-ललित और गीतकार समीर की जोड़ी मुझे सबसे अच्छी लगती थी..अब तो जतिन-ललित अलग हो गए, उनका आखरी संगीत था फिल्म "फ़ना" में. 

ये दोनों गीत तब के हैं, जब मैंने गीतों, फिल्मों में इंटरेस्ट लेना शुरू किया था...पहला गीत है "ओ ओ जाने-जाना..." फिल्म प्यार किया तो डरना क्या से.गायक हैं कमाल खान, और गीतकार समीर..
दूसरा  गीत है फिल्म "जब प्यार किसी से होता है" से, और गीतकार हैं "आनंद बक्शी"..गीत के बोल हैं "पहली पहली बार जब प्यार किसी से होता है.."

दोनों गीतों में संगीत है जतिन-ललित का.

ओ ओ जाने जाना..


पहली पहली बार जब प्यार किसी से होता है....

Tuesday, July 20, 2010

जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमे

आज  मैं न जाने क्यों शाम से ही कैफी आज़मी की गज़लों में डूबा हूँ....मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ..इसलिए भी आज उनके गज़लों में शाम बीती है :) अपने मुख्य ब्लॉग पे भी एक कैफी आज़मी की गज़ल आज पोस्ट की है.


ये कैफी आज़मी का लिखा हुआ गीत, फिल्म शोला और शबनम से लिया गया है..ये फिल्म भी अच्छी लगी थी, धर्मेन्द्र तो वैसे भी अपने फेवरिट अभिनेता में से हैं..


इस  गीत में संगीत दिया है खय्याम ने...और आवाज़ है रफ़ी साहब की .. 


जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमे
राख के ढेर में शोला है न चिंगारी है

अब न वो प्यार न उस प्यार की यादें बाकी
आग यूँ दिल में लगी, कुछ न रहा, कुछ न बचा
जिसकी तस्वीर निगाहों में लिए बैठी हो
मैं वह दिलदार, नहीं उसकी हूँ खामोश चिता
जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमे



जिंदगी हंस के गुज़रती तो बहुत अच्छा था
खैर, हँसके न सही, रो के गुज़र जायेगी
राख बरबाद मुहब्बत की बचा रखी है
बार-बार इसको जो छेड़ा तो बिखर जायेगी
जाने क्या ढूँढती रहती हैं ये आँखें मुझमें…



आरज़ू जुर्म, वफ़ा जुर्म, तमन्ना है गुनाह
यह  वह दुनिया है जहाँ प्यार नहीं हो सकता
कैसे बाज़ार का दस्तूर तुम्हें समझाऊं
बिक गया जो वो खरीदार नहीं हो सकता



Tuesday, July 13, 2010

करोगे याद तो हर बात याद आएगी

करोगे याद तो हर बात याद आएगी
गुज़रते वक़्त की हर मौज ठहर जायेगी

ये चाँद बीते जमानों का आइना होगा
भटकते अब्र में चेहरा कोई बना होगा
उदास राह कोई दास्ता सुनाएगी
करोगे याद तो हर बात याद आएगी

बरसता भीगता मौसम धुवा धुवा होगा
पिघलती शम्मों पे दिल का मेरे गुमा होगा
हथेलियों की हीना याद कुछ दिलाएगी
करोगे याद तो हर बात याद आएगी

गली के मोड़ पे सुना सा कोई दरवाज़ा
तरसती आँखों से रास्ता किसी का देखेगा
उदास आँखों की नमी कुछ बताएगी
करोगे याद तो हर बात याद आएगी


ये  गाना मुझे बहुत पसंद है,  :) 


Monday, July 12, 2010

आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे

मैं कुछ कहूँगा नहीं, सीधे गीत पर ही आता हूँ.. आप भी सुने और मदहोश हो जाएँ.. :)

आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे, दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आहटों से अँधेरे चमकते रहे, रात आती रही रात जाती रही

गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाईयां, दूर बजती रहीं कितनी शहनाईयां
ज़िन्दगी ज़िन्दगी को बुलाती रही, आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ ...

कतरा कतरा पिघलता रहा आसमान, रूह की वादियों में न जाने कहाँ
इक नदी.. इक नदी दिल रुबा गीत गाती रही
आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही
आप यूँ...

आप की गर्म बाहों में खो जाऐंगे, आप की नर्म जानों पे सो जाऐंगे
मुद्दतों रात नींदें चुराती रही, आप यूँ फासलों से गुज़रते रहे
दिल से क़दमों की आवाज़ आती रही


एक दिन आप यूँ...

"हर किसी को लाईफ में एक बार प्यार करना चाहिए, प्यार इंसान को बहुत अच्छा बना देता है"
फिल्म - "प्यार तो होना ही था"

कितना सच है ना! प्यार ऐसा रंग भरता है की सब कुछ नया सा लगने लगता है. वही पुरानी बातें...पुराने लोग....सब इतने अच्छे लगने लगते हैं जैसे पहले कभी नहीं लगे. ऐसा ही एक गाना है, जिसमे इस एहसास को शब्दों और संगीत से इतनी खूबसूरती से सजाया गया है कोई प्यार करने वाला और प्यार करने लगे और ना करने वाला भी किसी के ख्यालों में डूब जाए.

एक दिन आप यूँ हमको मिल जायेंगे.....फूल ही फूल राहों में खिल जायेंगे...मैंने सोचा ना था!



सभी प्यार करने वालों के लिए!!!

Thursday, July 8, 2010

बूझ मेरा क्या नाम रे.....

ये गीत मुझे मेरे बचपन के सन्डे की याद दिलाता है. जी नहीं, मैं उस ज़माने में नहीं पैदा हुई थी, लेकिन सन्डे की दुपहरिया को इस फिल्म का कैसेट ज़रूर बजता था. शायद ऐसे ही कुछ गीत हैं जिसने मुझे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का मायने सिखाया. इस गीत में कितनी शालीनता से शरारत भी है, और अल्ल्हड़पन भी. जावेद अख्तर जी ने एक बार कहा था - "पहले के गीतों में आत्मा होती थी, आज कल के गीतों में सिर्फ शरीर".