Thursday, May 20, 2010

फेंको ये किताबें...

हाँ  हाँ  यादों  में  है  अब  भी,

क्या  सुरीला  वो  जहाँ  था,
हमारे  हाथों  में  रंगीन  गुब्बारे  थे,
और  दिल  में  महकता  समां  था,
यारा  हो  मौला…

वो  तो  ख्वाबो  कि  थी  दुनिया,
वो  किताबो  कि  थी  दुनिया,
साँस  में  थे  मचलते  हुए  ज़लजले,
आँख  में  वो  सुहाना  नशा  था,
यारा  हो  मौला…

वो  ज़मीन  थी, आसमान  था,
हम  को  लेकिन  क्या  पता  था,
हम  खड़े  थे  जहाँ  पर,
उसी  के  किनारे  पर  गहरा  सा  अँधा  कुआ  था,

फिर  वो  आये  भीड़  बन  कर,
हाथ  में  थे  उनके  खंजर,
बोले  फेंको  यह  किताबे ,
और  संभालो  यह  सलाखें,
ये जो  गहरा  सा  कुआ  है, हाँ  हाँ  अँधा  तो  नहीं  है,
इस  कुए  में  है  खज़ाना, कल  कि  दुनिया  तो  यही  है,
कूद  जाओ  लेके  खंजर, काट  डालो  जो  हो  अन्दर,
तुम  ही  कल  के  हो  शिवाजी, तुम  ही  कल  के  हो  सिकंदर,

हमने  वो  ही  किया  जो  उन्होंने  कहा,
क्यूंकि  उनकी  तो  ख्वाहिश  यही  थी,
हम  नहीं  जानते  यह  भी  क्यू यह  किया?
क्यूंकि  उनकी  फरमाइश  यही  थी,
अब  हमारे  लगा  जायका  खून  का,
अब  बताओ  करे  तो  करे  क्या?
नहीं  है  कोई  जो  हमे  कुछ  बताये,
बताओ  करे  तो  करे  क्या??

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विद्यार्थियो को क्रान्ति के नाम पर बरगलाने वालो को ये तमाचा था… रोज़ कश्मीर मे आतंकवादियो और बाकी क्षेत्रो मे नक्सलवादियो के चक्कर मे आने वाले छात्रो के लिये ये एन्थेम होना चाहिये……

ये गाना ज्यादा पॉपुलर नही  हुआ… पीयूष मिश्रा के शानदार शब्द और इंडियन ओशियन का लाजवाब संगीत शायद लोगो के कानो के पार नही पहुँचा। हमारे हिन्दी समाज मे ऐसे चिल्लाते हुए गानो का ज्यादा प्रचलन भी नही है।

वेस्ट मे ऐसे कई सिंगर रहे जिन्होने वहाँ के सोते हुये समाज को जगाने की कोशिशे की। ऐसे गानो को प्रोटेस्ट सांग कहा गया और ये गाने जनता की आवाज़ बनते गये…

this_machine_kills_fascistsसाठ के दशक मे बाब डायलन ने इन गानो को एक नयी पहचान दी। उनके तकरीबन सारे गाने उस  समाज के शोषित वर्ग को सम्बोधित करते थे और उनपर होने वाली त्रासदियो को बताते थे… यहा तक कि इन्होने अमेरिका के सिविल राईट आन्दोलन मे मार्टिन लूथर किन्ग की रैलियो मे भी गाया…

वूडी एक ऐसे सिंगर थे जिन्होने वहा के फोल्क म्यूजिक को एक अलग परिभाषा दी और प्रोटेस्ट गानो को नये मायने। उनके गिटार पर लिखा होता था – This machine kills Fascists.

हाल मे ही एक फ़िल्म आयी थी – आई एम नाट देयर, जिसमे अलग अलग प्रोटेस्ट सिन्गर्स के पर्सपेक्टिव से बाब डायलन की ज़िन्दगी को दिखाया गया था। अवश्य देखे उसे..

 

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मैने ये सब क्यू लिखा?

बस इंडियन ओशियन का ये गाना सुन रहा था, इसका वीडियो जब यू ट्यूब पर ढूढा तो रिज़ल्ट अपेक्षा से बहुत ज्यादा कम दिखे… सोचा आपसे पूछू कि क्या आपने इसे सुना है??

P.S   इसी तर्ज़ पर अपने पसन्दीदा गाने भी जरूर शेयर करे……

4 comments:

  1. sundar geet aur jaankaari ke liye dhanywaad...

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  2. अच्छे तर्क के साथ बात कही है । रचन प्रशंसनीय ।

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  3. इस सिनेमा के गाने मुझे हद दर्जे तक पसंद है..

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