Thursday, May 20, 2010

नुसरत को समेटे हुए पांच पोस्टों का जिक्र कुछ इस तरह

शुरुवात करते हैं हिंदी युग्म कि इस पोस्ट से.. नुसरत जी से शुरू कर यहाँ गजब का समां बाँधा गया है सूफी संगीत का.. यह दो भागों में बनता हुआ है, पहले भाग से एक वाक्य कोट कर रहा हूँ यहाँ जिसमे हाफ़िज़ ने सूफी के बारे में कहा है :
"सूफ़ी कवि वह होता है जो एक प्याले में रोशनी भरता है और प्यास से पपड़ाए-सूखे तुम्हारे पवित्र हृदय के लिए उसे पी जाता है!"
इस पोस्ट में अशोक पांडे जी कहते हैं :
यह अनायास ही नहीं हुआ कि महान सूफ़ी कवि तब पैदा हुए जब समाज पर धार्मिक कट्टरवाद अपने चरम पर था. इन कवियों-गायकों की आमफ़हम भाषा की बढ़्ती लोकप्रियता से चिन्तित कठमुल्ले शासकों ने उन पर प्रतिबन्ध लगाए.
भाग दो में अशोक जी बताते हैं :
कहा जाता है कि सूफ़ीवाद ईराक़ के बसरा नगर में क़रीब एक हज़ार साल पहले जन्मा. भारत में इसके पहुंचने की सही सही समयावधि के बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में ग़रीबनवाज़ ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती बाक़ायदा सूफ़ीवाद के प्रचार-प्रसार में रत थे.
अधिक जानने के लिए इसके भाग एक और भाग दो को पढ़ें.. अवश्य आनंद आएगा..

हिंदी-युग्म के पॉडकास्ट वाले इस ब्लॉग पर कई नगीने छुपे हुए हैं.. अगर आप ख़ूबसूरत गानों के शौक़ीन हैं तो कभी फुरसत में बैठ आप आराम से इस ब्लॉग को देखें..

==============================================

आपको मयूर जी द्वारा प्रस्तुत इस पोस्ट को जरूर देखना चाहिए.. यहाँ वह नुसरत साहब के ही एक अन्य कव्वाली का जिक्र कर रहे हैं.. कव्वाली के बोल हैं "ये जो हल्का-हल्का सुरूर है".. जब पहली बार मैंने यह कव्वाली सुनी तब कोई १४-१५ साल का रहा होऊंगा.. वह उम्र अमूमन तेज भागते गानों को पकड़ने का उम्र होता है जिसमे धैर्य कि जरूरत ना पड़े, मगर फिर भी पूरे धैर्य के साथ लगभग बीस मिनट कि यह कव्वाली जाने कितनी ही दफा सुना होऊंगा..

कुछ बोल यहाँ डाल रहा हूँ, बाकी आप उन्ही के ब्लॉग पर जाकर पढ़े और सुने :
साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया
एय रहमत-ऐ-तमाम मेरी हर खता मुआफ़
मैं इंतिहा-ऐ-शौक में घबरा के पी गया
पीता बगैर इज़्म ये कब थी मेरी मजाल
दर-पर्दा चश्म-ऐ-यार की शह पा के पी गया
उनके ब्लॉग का लिंक यहाँ है.. सबसे नीचे वह लिखते हैं :
यदि मै कहू मुझे नुसरत फतह अली खान साहब का नशा है तो वोह ग़लत नही है, खुदा ने मेरे गले को उतना नूर नो नही दिया , पर शुक्रियाअदा करता हूँ उनका के मुझे सुन सकने लायक बनाया है ।
==============================================

हमारे नीरज रोहिल्ला भाई अक्सर दौडना छोड़ कर कव्वालियों में भी गोते लगाते रहते हैं.. नुसरत साहब कि ही एक पंजाबी कव्वाली जो बुल्ले साह का लिखा हुआ है सुनाते हुए वह कहते हैं :
मुझे बेहद अफ़सोस है कि कभी पंजाबी नहीं सीखी, मेरा ननिहाल रोहतक में था(है?)। मेरी माताजी पंजाबी बोल/समझ लेती हैं लेकिन कभी उनसे पंजाबी नहीं सीखी इसका बडा रंज है।
इस कव्वाली के कुछ बोल यहाँ नीचे दिए जा रहा हूँ, बाकी आप उनके पोस्ट पर ही जाकर गुने और सुने..
गफ़लत न कर तू, छोड जंगली बसेरा ।
पंछी वापिस घर आ गये, तेरा मन क्यों नहीं करता,
मैं तेरी तू मेरा,
यार जिन्दगी करे कुरबानी जे यार आये एक बार,
इश्क का चर्खा दुखों का पूरिया (पहाड)
उनके इस पोस्ट पर जाने के लिए यहाँ क्लिक करें..

==============================================

इसमें एक बार फिर अशोक पांडे जी को लेकर आया हूँ, उनके कबाड़ख़ाने से.. इस पर आलोक पुराणिक जी का कमेन्ट अनुसरणीय है.. वे कहते हैं :
भई वाह वाह है जी।
इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा
राष्ट्रीय संग्रहालय को वो कबाड़खाना कहते हैं

सरजी
मैंने तो कबाड़खाने को राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित कर दिया है।
मेरे मुताबिक उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा है.. एक से बढ़कर एक हीरे जरे हुए हैं इस कबाड़खाने में.. जिनमें मैं सिद्धेश्वर जी और अशोक जी को पढ़ना खूब पसंद करता हूँ.. एक से बढ़कर एक कविता, गजल और कव्वाली आपको यहाँ मिलेंगे.. सिर्फ आपको धैर्य के साथ ढूँढना होगा उन्हें..

इस पोस्ट में वह लेकर आये थे नुसरत साहब कि ही एक कव्वाली जिसके बोल हैं "सुन चरखे दी मिट्ठी मिट्ठी कूक".. इसे पेश करते हुए वह कहते हैं :
अपनी नातों और सूफ़ियाना क़व्वालियाओं के लिए जगतविख्यात नुसरत फ़तेह अली ख़ान अपने जीवनकाल में ही एक किंवदन्ती बन गए थे. आवाज़ के साथ उनकी जादूगरी के साथ मैं पता नहीं कितनी कितनी बार बहा हूं, रोया हूं और नितान्त अकेलेपन में भी अलौकिक साथियों से घिरा हूं.
इस पोस्ट पर जाने के लिए आपको इस लिंक से होकर गुजरना पड़ेगा..

==============================================

पिछले साल शिवम मिश्रा जी यह पोस्ट नुसरत साहब के जन्मदिन पर लेकर आये थे जो आज ही मेरे हाथ लगा और मुझे यह पोस्ट लिखने का आइडिया और मौका मिला.. इस पोस्ट में वह नुसरत साहब के जन्म, खानदान, पिता, कव्वाली और भी ना जाने क्या क्या समेत रखे हैं.. इस पोस्ट में वह लिखते हैं :
रूहानी संगीत का जिक्र सूफी संगीत की बिना अधुरा है…और सूफी संगीत उस्ताद नुसरत फ़तेह अली के बिना अधुरा है.
आपका तो पता नहीं लेकिन उनकी बात से शत-प्रतिशत सहमत हूँ मैं.. आगे बताते हैं :
उस्ताद नुसरत बेहद संजीदा इन्सान थे.बुलंदी के मुकाम पर भी नुसरत ने हमेसा सादगी से नाता रखा.कहते हैं के सूफी गाते गाते वे सूफी हो गए.वे ख़ुद भी मानते थे कि”ज्यादा सूफी सुनने और गाने से इंसान की फितरत में बेराग्य पैदा हो जाता है।
अधिक जानने के लिए के लिए आप इस लिंक पर जाएँ..

3 comments:

  1. बेहतरीन!!!
    बाकी कव्वालियाँ सुनकर मन प्रसन्न हो गया। हाँ, पंजाबी न सीखने की कसक तो रहेगी ही ।

    एक साथ इस प्रकार सामग्री एकत्र करके पाठकों/श्रोताओं को बडी सुविधा हो गयी। धन्यवाद...

    ReplyDelete
  2. गफ़लत न कर तू, छोड जंगली बसेरा ।
    पंछी वापिस घर आ गये, तेरा मन क्यों नहीं करता,
    मैं तेरी तू मेरा,
    यार जिन्दगी करे कुरबानी जे यार आये एक बार,
    इश्क का चर्खा दुखों का पूरिया (पहाड)..........
    itne sare blog se materiyal ekatha karke dene ke liye shukriya aapka.......

    ReplyDelete
  3. ये संकलन तो बुकमार्क कर लिया मैने। अच्छी पोस्ट ....बहुत बहुत शुक्रिया मित्र।

    ReplyDelete