Sunday, June 13, 2010

बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे - ग़ालिब और जगजीत सिंह

ग़ालिब  की गज़ल और जगजीत सिंह की आवाज़..इससे बेहतर क्या हो सकता है.सुनते हैं ग़ालिब के दो गज़ल..पहले दूरदर्शन पे मिर्ज़ा ग़ालिब दिखाया जाता था, जिसे गुलज़ार साहब ने डाईरेक्ट किया था.उसी के २ गज़ल आज आपके सामने ला रहा हूँ.


बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़  तमाशा  मेरे आगे

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमां मेरे नज़दीक
इक  बात  है एजाज़-ए-मसीहा  मेरे  आगे

जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहाँ नहीं  हस्ती-ए-आशिया  मेरे आगे

होता है निहां  गर्द  में सहरा मेरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक़ पे दरिया मेरे आगे

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे ?
तू  देख  के  क्या  रंग  तेरा  मेरे  आगे

सच कहते हो, ख़ुदबीं-ओ-ख़ुद-आरा ना क्यों हूं ?
बैठा   है   बुत-ए-आईना-सीमा   मेरे    आगे  
 
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ्शानी-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई  पैमाना-ओ-सहबा  मेरे  आगे

नफ़रत का गुमां गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा
क्यों  कर  कहूँ,  लो  नाम  ना  उसका  मेरे  आगे

इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे  कुफ्र
क़ाबा   मेरे  पीछे  है  कलीसा  मेरे  आगे

आशिक़ हँ, पे माशूक़-फरेबी है मेरा काम
मजनूं  को  बुरा  कहती  है लैला  मेरे आगे

ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यों मर नहीं जाते
आई   शब-ए-हिजरां  की   तमन्ना   मेरे  आगे

है मौज-ज़ां इक क़ुलज़ूम-ए-ख़ूं, काश, यही हो
आता  है  अभी  देखिए  क्या-क्या   मेरे  आगे  

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आहों में तो दम है
रहने   दो   अभी  साग़र-ओ-मीना   मेरे   आगे

 हम-पेशा-ओ-हम-मशर्ब-ओ-हम-राज़  है मेरा
ग़ालिब को बुरा क्यों कहो अच्छा मेरे आगे 

[जो लाइन इटालिक(italic) में है, गाने में बस वही लाइन हैं..] 

आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे ज़ुल्फ़ के सर होने तक

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रँग करूँ खून-ए-जिगर होने तक

हम ने माना के तग़कुल न करोगे लेकिन
खाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होने तक

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किससे हो कुज़-मर्ग-ए-इलाज
शमा हर रँग में जलती है सहर होने तक

6 comments:

  1. शानदार पोस्ट है...

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  2. आभार इसे प्रस्तुत करने का.

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